जब भी भगवान की पूजा की जाती है, तो आपके देखा होगा किसी भी देवी देवता की जब पूजा की जाती है, तो उनके मनपसंद चीज भगवान को चढ़ाई जाती है | कहा जाता है कि इससे भगवान प्रसन्न होते है और शुभ फल प्रदान करते है | भगवान विष्णु को तुलसी चढ़ाई जाती है, महादेव को आक के फूल, बिल पत्र और दूध चढ़ाया जाता है, और साथ ही गणेश जी को मोदक चढ़ाये जाते है | लेकिन क्या आप जानते है गणेश जी को कभी भी तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है, गणेश जी को तुलसी चढ़ाना वर्जित माना गया है |
दरअसल गणेश जी को तुलसी ना चढ़ाये जाने के पीछे पुराणों में एक कथा है | जो इस प्रकार है, एक बार गणेश जी गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे | उस समय धर्मात्मज की कन्या तुलसी अपने विवाह की इच्छा को लेकर तीर्थयात्रा पर निकली | जब वह तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हुए गंगा तट पहुंची तो वहां उन्होंने गणेश जी को तप करते हुए देखा | शास्त्रों के अनुसार गणेश जी रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे, उनके पुरे शरीर पर चन्दन लगा था और उनके गले में पारिजात पुष्पों की रत्न जड़ित माला थी | गणेश जी के सूंदर स्वरूप और तेज को देखकर तुलसी उन पर मोहित हो गयी |
तुलसी के मन में गणेश जी से विवाह की इच्छा जाग्रत हुयी और अपनी इस इच्छा की वजह से तुलसी ने गणेश जी का ध्यान भग कर दिया | गणेश जी ने अपने ध्यान भंग होने को अशुभ बताया और जब उनको तुलसी की इच्छा के बारे में पता चला तो उन्होंने विवाह से मना कर दिया और कहा कि वे ब्रह्मचारी है और विवाह नहीं कर सकते है |
विवाह प्रस्ताव ठुकराने से नाराज तुलसी ने गणेश जी को श्राप दिया कि तुम्हारे एक नहीं दो विवाह होंगे | इस श्राप से क्रोधित गणेश जी ने तुलसी को भी श्राप दे दिया कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा | राक्षस से विवाह की बात से तुलसी डर गयी और गणेश जी से माफ़ी मांगने लगी |
बाद में गणेश जी ने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा, किन्तु बाद में तुम भगवान विष्णु और कृष्ण की प्रिय होने के साथ ही कलयुग में शांति और मोक्ष प्राप्ति देने वाली मानी जाओगी | लेकिन मेरी पूजा में तुम्हारा कोई प्रयोग नहीं किया जायेगा |
तभी से गणेश जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता है |